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बलवान ****** हाँ मैं बलवान हूँ, क्योंकि, जेठ की जि

बलवान
******
हाँ मैं बलवान हूँ,
क्योंकि, जेठ की जिस दोपहरी में,
तुम छांव की तलाश में होते हो,
मैं, तपे पांव, जल रहा होता हूँ।

हाँ मैं बलवान हूँ,
क्योंकि,मूसलाधार वारिशों में,
तुम छत ढूंढते फिरते हो,
मैं बेपरवाह,सराबोर,
सड़को पे चल रहा होता हूँ।

हाँ, मैं बलवान हूँ,
क्योंकि, सर्द तापमान में जब
तुम अलाव सेक रहे होते हो,
मैं, ओस की बूंदों के साथ,
पिघल रहा होता हूँ।

हाँ मैं बलवान हूँ
जिन दुरियों को चलने में
 तेरी सांसे फूलने लगती है,
मैं कंही अधिक दुरियों की तलाश में
मचल रहा होता हूँ।

हाँ मैं बलवान हूँ
तुम धुप्प स्याह अंधेरे में,
ठहर रौशनी की चाह रखते हो,
मैं अंधेरे की छाया बन
टहल रहा होता हूँ।

हाँ मैं बलवान हूँ
राह में चोटियां देख
जब तेरी धड़कने बढ़ जाती है,
मैं उन चोटियों से नीचे 
फिसल रहा होता हूँ।

हैं मैं बलवान हूँ
क्योंकि भीड़ को देख
तेरे पाँव ठिठक जाते है,
उस भीड़ को बिखेर 
मैं संभल रहा होता हूँ।

हाँ मैं बलवान हूँ
जब असंभव की सोच लिए
तुम हार रहे होते हो
संभावनाओं की आश लिए
मैं पहल लिया करता हूँ।। 

दिलीप कुमार खां"""'अनपढ़"""" #बलवान
बलवान
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हाँ मैं बलवान हूँ,
क्योंकि, जेठ की जिस दोपहरी में,
तुम छांव की तलाश में होते हो,
मैं, तपे पांव, जल रहा होता हूँ।

हाँ मैं बलवान हूँ,
क्योंकि,मूसलाधार वारिशों में,
तुम छत ढूंढते फिरते हो,
मैं बेपरवाह,सराबोर,
सड़को पे चल रहा होता हूँ।

हाँ, मैं बलवान हूँ,
क्योंकि, सर्द तापमान में जब
तुम अलाव सेक रहे होते हो,
मैं, ओस की बूंदों के साथ,
पिघल रहा होता हूँ।

हाँ मैं बलवान हूँ
जिन दुरियों को चलने में
 तेरी सांसे फूलने लगती है,
मैं कंही अधिक दुरियों की तलाश में
मचल रहा होता हूँ।

हाँ मैं बलवान हूँ
तुम धुप्प स्याह अंधेरे में,
ठहर रौशनी की चाह रखते हो,
मैं अंधेरे की छाया बन
टहल रहा होता हूँ।

हाँ मैं बलवान हूँ
राह में चोटियां देख
जब तेरी धड़कने बढ़ जाती है,
मैं उन चोटियों से नीचे 
फिसल रहा होता हूँ।

हैं मैं बलवान हूँ
क्योंकि भीड़ को देख
तेरे पाँव ठिठक जाते है,
उस भीड़ को बिखेर 
मैं संभल रहा होता हूँ।

हाँ मैं बलवान हूँ
जब असंभव की सोच लिए
तुम हार रहे होते हो
संभावनाओं की आश लिए
मैं पहल लिया करता हूँ।। 

दिलीप कुमार खां"""'अनपढ़"""" #बलवान