ओ रे मांझी **** ओ रे मांझी,तीरे ले चल, डूब रहा है दिल मेरा है कोई बैचैन,तट पे,राह देखे चुप खड़ा। उसकी आंखों के चरागों को जलाना है अभी क्या पता,फिर लौट पाऊं,या न पाऊं फिर कभी थाम लूँ,मैं हाथ उसका,दूँ तस्सली उम्र का भर दूँ, हंसी आंखों में उसके,देके खुद को ही सजा ओ रे मांझी,फिर कोई राग गाओ प्रीत का मन ये बोझिल हो रहा है,याद दिलाओ मीत का कह दो इस पगली पवन से,रुख ये अपना मोड़ ले धारों को ये तेज करदे,खुद को इससे जोड़ ले है कंहा अब वक्त इतना,धड़कने पुरजोर है बाबला से बह रहा हूँ,कब,किनारा, छोर है? ओ रे मांझी खोद दे,मस्तूल अपना अब यंही मीत मेरी बाट जोहे, थक न जाए फिर कंही गाओ तुम मल्हार कोई,प्रीत धुन में कूककर दर्द सांसो से बहाकर, फिर जिला दो फूंककर सब्र अब होता नही,पल-पल जो दूरी घट रहा चप्पू तुम कुछ तेज साधो, क्यों ये दूरी बढ़ रहा? ओ रे मांझी,धड़कने,बैचैन अब ये हो रहा तू समझ मेरी व्यथा को,कारवां तू ढो रहा दर्द को साझा समझकर,मुझपे तू उपकार कर कोई कीमत मैं कगुक दूँ, बस तू मुझको पार कर बांध लूँ बाँहों का बंधन,तपती आहों को जरा वर्षों गुजरी आस में जो,सींच दूँ उसको जरा ओ रे मांझी तीरे ले चल,डूब रहा है दिल मेरा....... दिलीप कुमार खाँ """अनपढ़"" #ओ रे मांझी