तुम जब भी हंस देती हो मेरा बसंत आ जाता है धूप मे तपा हुआ, लथपथ पसीने से वजन अपने वज़ूद का उठाए सौ काम के बोझ से चिड़चिड़ाया सैकड़ों नियमों की खीझ मे भी कहीं मिल जाती हो, हंस देती हो और मेरा बसंत आ जाता है भीगा बदन सब कपड़े भीगे जूते बटुआ भीगे भीगा मेरे रोम रोम उमस से उखड़ी साँसें, बिजबिजाते नाले और नालियां फिर मिल जाती हो हंस देती हो मेरा बसंत आ जाता है सर्द हवायें, रूह को कंपकंपी आए एक और लिहाफ हो एक और आग किटकिटाते दांतों और कांपती देह को एक आग मिले कुछ ताप मिले पर तुम मिल जाती हो हंस देती हो और मेरा बसंत आ जाता है सिर्फ ऋतु की बात नहीं हर बात पर, हर हाल मे जीवन संघर्ष के हर काल मे गिरते पड़ते लड़ते भिड़ते क्रोध मे नाराजगी मे बेबसी मे जब जहां कभी भी कहीं भी मिल जाती हो मुस्का देती हो बसंत आ ही जाता है #तुम #बसंत #ऋतुएं