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सच की चादर ओढ़ बैठी है ख्वाहिशें, म

सच की चादर ओढ़ बैठी है ख्वाहिशें,                 मुझसे मुँह मोड़कर बैठी है  ख़्वाहिशें,  
 कभी तो आसमा की बुलन्दी बनाती,        कभी एक पल में गिराती है ख़्वाहिशें,
 तुफानो से लड़ने का हौसला भी देती,         तो कभी झुकाकर डराती है ख्वाहिशे,
कभी इश्क़ का इकरार बनकर आती,     कभी इनकार बन रुलाती है ख्वाहिशें,
कभी जिंदगी को सतरंगी बना  जाती,       कभी बेरंग दाग दे मिटाती है ख्वाहिशें, 
कभी तो मुक्कमल जहां बनाती है तो,    कभी पल में हस्ती मिटाती है ख्वाहिशे,
क्या करे बयान क्या होती है ख्वाहिशें,      सच से ज्यादा ज़ुल्मी होती है ख्वाहिशे"

©Saurabh Mahajan
  *ख्वाहिशे*

*ख्वाहिशे* #Shayari

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