सुनो... मुक्ति का मार्ग तो संग्रह के विपरीत छोड़ना सिखाता है। आप जब किसी को पकड़ते हो तो स्वयं भी तो उससे बंधते हो। उससे जुड़ी क्रियाएं-प्रतिक्रियाएं मन पर छायी रहती हैं। मन को शांत नहीं होने देती। आगे से आगे लोभ में प्रवृत्त करती है। तृष्णा का रूप लेती हैं। क्रोध एवं आक्रामकता बढ़ती है। 💕😊💕🙏🌷🌷🙏 : विद्या भाव उदारता देता है। अविद्या का प्रभाव संग्रह या परिग्रह की ओर आकर्षित करता है। तृष्णा का कारक बनता है। तम का साम्राज्य है। उदारता सत्व गुण प्रधान है। हल्कापन पैदा करता है।