पिता! मैं तुझे लिखकर समझना चाहता हूँ तुम हो पूरा इतिहास झकझोरते हो तुम तुझसे नाराज़ हुआ जा सकता है राज़ी भी,उदास भी मगर नहीं किया जा सकता है नज़रअंदाज़ तुझीमें जज़्ब हैं इन्सानी फ़ितरत की कहानियाँ सारी # पिता! तुम फ़िक्र के बीच पलती उम्मीद हो