हैं दौर गर्दिशों के अय दिल संभल ज़रा मौसम तो बदल ही जायेंगें तु भी बदल ज़रा कितनी ही हसरतों को धुँआ बना के उड़ा दिया सुलगती लकड़ियों की तरह मेरे संग जल ज़रा क्या मायने रहे चिराग के अंधेरों से पुछिये दो कदम कभी तो साथ रोशनी में चल जरा बे-मौसमी बरसातों के दिल बड़े नहीं होते तेरे कदमों की आहटों से न जाये दहल ज़रा हम फिर नज़र न आयें शायद खिड़की से तेरी चेहरा दिखा दे आज घर से निकल ज़रा ©Dalip Kumar Deep 🍂🍁 सुलगती लकड़ियों की तरह मेरे संग जल ज़रा🍁🍂🍂 🌿🌿 शायर तेरा🌷