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हूँ मैं उम्मीदों के आश पर थोड़ा इस ज़मी पर थोड़ा आसमा

हूँ मैं उम्मीदों के आश पर
थोड़ा इस ज़मी पर
थोड़ा आसमान पर
भूगोल ही ऐसा हैं
इन उम्मीदों का
लग जाता हैं मन
टेढ़े-मेढ़े मानचित्र उखेरने
कहीं पर पर्वत के
कहीं पर मधुर ध्वनी के
कल-कल करते झरनों के
कहीं पर वादियाँ के
तो कहीं पर पथरिले रास्तों के
परिस्थितियों के अनुकूल 
उम्मीद कहीं डगमगा जाती हैं
तो कहीं उड़ान भरने 
आतुर हो जाती हैं
मेहनत और लगन भी मेरी
उम्मीदों के दरवाजे पर
बैठ कर देख रही होती हैं
हैं कितनी ललक मुझमें
एक उम्मीद मेरे अपनो की
मेरी सफलताओं के लिए
छाप सी बनी हुई हैं
वहीं जिम्मेदारियाँ पूरी कर लू
एक उम्मीद हैं
गिर जाऊँ, टुट जाऊँ तो
सहारा बस उम्मीद हैं

✍️©® By# Kishan_Korram #Umeedहूँ मैं उम्मीदों के आश पर
थोड़ा इस ज़मी पर
थोड़ा आसमान पर
भूगोल ही ऐसा हैं
इन उम्मीदों का
लग जाता हैं मन
टेढ़े-मेढ़े मानचित्र उखेरने
कहीं पर पर्वत के
हूँ मैं उम्मीदों के आश पर
थोड़ा इस ज़मी पर
थोड़ा आसमान पर
भूगोल ही ऐसा हैं
इन उम्मीदों का
लग जाता हैं मन
टेढ़े-मेढ़े मानचित्र उखेरने
कहीं पर पर्वत के
कहीं पर मधुर ध्वनी के
कल-कल करते झरनों के
कहीं पर वादियाँ के
तो कहीं पर पथरिले रास्तों के
परिस्थितियों के अनुकूल 
उम्मीद कहीं डगमगा जाती हैं
तो कहीं उड़ान भरने 
आतुर हो जाती हैं
मेहनत और लगन भी मेरी
उम्मीदों के दरवाजे पर
बैठ कर देख रही होती हैं
हैं कितनी ललक मुझमें
एक उम्मीद मेरे अपनो की
मेरी सफलताओं के लिए
छाप सी बनी हुई हैं
वहीं जिम्मेदारियाँ पूरी कर लू
एक उम्मीद हैं
गिर जाऊँ, टुट जाऊँ तो
सहारा बस उम्मीद हैं

✍️©® By# Kishan_Korram #Umeedहूँ मैं उम्मीदों के आश पर
थोड़ा इस ज़मी पर
थोड़ा आसमान पर
भूगोल ही ऐसा हैं
इन उम्मीदों का
लग जाता हैं मन
टेढ़े-मेढ़े मानचित्र उखेरने
कहीं पर पर्वत के

#Umeedहूँ मैं उम्मीदों के आश पर थोड़ा इस ज़मी पर थोड़ा आसमान पर भूगोल ही ऐसा हैं इन उम्मीदों का लग जाता हैं मन टेढ़े-मेढ़े मानचित्र उखेरने कहीं पर पर्वत के #कविता