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जिम्मेदारियों से दबे हुए हैं। हौसले अभी झुके हुए ह

जिम्मेदारियों से दबे हुए हैं।
हौसले अभी झुके हुए हैं। 
उठने को मिल जाये कोई हाथ।
दिल ज़ख्मों से भरे हुए हैं।
मुसीबतों में कोई सहारा नहीं मिलता।
हर कोई अपने मतलब से जुड़े हुए हैं।
दुनियाँ का क्या अजीब रीत है।
इंसान इंसान को नहीं पूछता।
हर कोई ज़रूरतों के पीछे पडे हुए हैं।

©MD Afzal
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