खुशनुमा अहसास में, परिवार से दूर एक शरद हवा में, बेगाने से अनजाने से माहौल में सांस ले रहा हूँ। हा मैं अपनी मंजिल की ओर चल रहा हूँ।। खूबसूरत से दृश्य है, जो मानव की सोच से परे है। हसीन और मानव के हृदय को, झकझोड़ कर रख देने वाला वातावरण है।। जो चीख चीख कर कह रहा है। मैं चिरमिरी जन्नत की आबोहवा हु। लेकिन मैं अभी उससे मिला नही हूँ। हा मैं अपनी मंजिल की ओर चल रहा हूँ।। जो कहता है, हरे पत्तो से सजा सारा वृक्ष हूँ। पहाड़ो से बना मनमोहक सरल स्वभाव हूँ।। जहां लोग सुकून भारी सांसे लेते है , उस चरित्र को गर्भ में दबाये हुवे विराजमान हूँ । हा मैं अपनी मंजिल की ओर चल रहा हूँ।। Chirmiri jannat