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अब कहीं इस चौखट से दूर निकलूं तो देखुंगा, ये मन लग

अब कहीं इस चौखट से दूर निकलूं तो देखुंगा, ये मन लगने को तो लग जाएगा पर कितना लगेगा देखुंगा।

जमाना कहता है नजरों से दूर की दुनिया बेहद हंसीं है, अब निकल हीं रहा हूं तो वो भी देखुंगा।

ना जाने कितने रास्ते होंगे मेरे शहर से निकलने को,
पर जो मेरे घर तक लौटे, वैसा कोई देखुंगा।

सारा दिन तो देख लुंगा ये चमक-दमक शहरों का,
पर दिन ढले आशियाने लौटूं तो कौन नजर उतारेगा देखुंगा।

ये दोस्त-यार, गली-चौराहे सारे वायदे कर रहे थे मिलने की, अब कभी फुर्सत मिली तो छुट्टियों के चन्द दिन गिन कर देखुंगा।

©Saurav Ranjan
  Every step costs something, sometimes smiles, sometimes tears and sometimes memories.

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