हर ओर शोक कुछ,गहरा दिल यह गहराई बहुत कठिन मंजिल इन शोक में ले जाते,मेरे चंद पदान सौंपते मध्य कुछ भाव व आत्मसम्मान मान कर अपना,गहरे परिवर्तन का सहारा गुलाब तुम्हारा। पानी भी ग़र ज्यादा हुआ, तू ना खिल पायेगा , आँधी ग़र आयी कभी, तू शायद गिर जाएगा , धूप ग़र बडी़ तेज़ पडी़, कैसे तू संभल पायेगा , प्रकृति के अनुरूप तेरी, तेरा ख़याल मैं करती हूँ , दायरे में आँचल के मेरे, तुझे मैं महफूज़ रखती हूँ , मैं तुमसे.......... 'मोंगरे सा इश्क़' करती हूँ ।