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वो दिन बचपन के याद आते हैं तब दुनियादारी समझ नही आ

वो दिन बचपन के याद आते हैं
तब दुनियादारी समझ नही आती थी
अकेलापन क्या होता है 
क़भी महसूस ही नही हुआ
ज़िंदगी तो झरने सा बहता रहा
ठोकरें लगने से बचता रहा
आज न जाने कितने ठोकरें खा चुका
जिम्मेदारियां से तो अब  याराना सा लगता है,,
बचपन तो खोया खिलौना सा लगता है
जीवन की तकलीफें तो अब 
रात का बिछाउना सा लगता है।।

©nita kumari
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nitakumari4447

nita kumari

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