जय वाल्मीकि जय भीम असभ्य व संवेदनाहीन समाज क्या जाने जिंदा जली औरत का दर्द। आप जितने भी तर्क देकर तथ्य देकर या फिर मानवता की गुहार लगाकर होलिका के साथ हुए कृतज्ञ को उजागर करें। लेकिन जिस समाज की बुनियाद ही औरत के शोषण पर टिकी हो उसे कोई फर्क नहीं पड़ता। यह वही सभ्यक समाज है जो सती प्रथा का समर्थक रहा है कि अगर किसी स्त्री का पति मर जाए तो उसकी पत्नी को भी साथ ही जला दो। यह समाज बाल विवाह का समर्थक है जो नाबालिक बच्चियों को भी उम्रदराज़ आदमी से ब्याह दे। यह समाज समर्थक है औरत के स्कूल में ना घुसने का और यदि सावित्री जैसी औरत थोड़ा प्रयास करे तो उसे कीचड़ व पत्थर मार लज्जित करने का। यही समाज है वो जो निर्भया के दोषियों को फांसी होने पर गुहार लगाता है फांसी माफ करने की यह दुहाई दे कि इससे ब्राह्मण हत्या का पाप लगेगा। तो आप ऐसे असभ्य व संवेदनहीन समाज के आगे किसी जिंदा जलती औरत का दुःख रखोगे भी तो उसके लिए यह महज एक समाज से अधिक कुछ नहीं फिर औरत हो भी शुद्र??? इन्हें तो राम द्वारा त्यागी माँ सीता, कौरवों पांडवो द्वारा प्रताड़ित द्रौपती व इंद्र द्वारा नोची आहल्लिया तक की चींखें सुनाई नहीं दी तो फिर एक शुद्र कन्या का जिंदा जलना कौनसी बड़ी बात है। यह समाज तुलसी के "ढोल, पशु ,शुद्र ,ग्वार ,नारी,सब ताड़न के अधिकारी" का समर्थक है आदिकवि वाल्मीकि के "जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है" #Color #holi