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ऊँ हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट: ये अष्टदशाक्षर

ऊँ हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट:
 ये अष्टदशाक्षर मंत्र दिव्य प्रभाव देता है, मंत्र महोदधी में कहा गया है, जिस घर में इस मंत्र का जाप होता है, वहां कभी भी कोई अनिष्ट नहीं होता। खुशहाली और सकारात्मकता का माहौल हर तरफ रहता है।

शत्रु और रोगों पर विजय-
 ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय सर्वशत्रुसंहारणाय सर्वरोग हराय सर्ववशीकरणाय रामदूताय स्वाहा। 

                    "सुन्दरकांड"
सुन्दरकांड में 526 चौपाइयाँ,
60 दोहे, 6 छंद और 3 श्लोक है।

सुन्दरकांड में 5 से 7 चौपाइयों के बाद 1 दोहा आता है।

हनुमानजी वानरों को समझाते है-
जामवंत के बचन सुहाए।
सुनि हनुमंत हृदय अति भाए॥
तब लगि मोहि परिखेहु तुम्ह भाई।
सहि दुख कंद मूल फल खाई॥1॥
जाम्बवान के (सुन्दर, सुहावने) वचन सुन कर हनुमानजी को अपने मन में वे वचन बहुत अच्छे लगे और हनुमानजी ने कहा की – हे भाइयो!आप लोग कन्द, मूल व फल खाकर समय बिताना, औरतब तक मेरी राह देखना,
जब तक कि मैं सीताजी का पता लगाकर लौट ना आऊँ॥1॥

श्रीराम का कार्य करने पर मन को ख़ुशी मिलती है-
जब लगि आवौं सीतहि देखी।
होइहि काजु मोहि हरष बिसेषी॥
यह कहि नाइ सबन्हि कहुँ माथा।
चलेउ हरषि हियँ धरि रघुनाथा॥2॥
जब मै सीताजीको देखकर लौट आऊंगा,तब कार्य सिद्ध होने पर मन को बड़ा हर्ष होगा॥यह कहकर और सबको नमस्कार करके,रामचन्द्रजी का ह्रदय में ध्यान धरकर,प्रसन्न होकर हनुमानजी लंका जाने के लिए चले
2॥

हनुमानजी ने एक पहाड़ पर भगवान् श्रीराम का स्मरण किया-
सिंधु तीर एक भूधर सुंदर।
कौतुक कूदि चढ़ेउ ता ऊपर॥
बार-बार रघुबीर सँभारी।
तरकेउ पवनतनय बल भारी॥3॥
समुद्र के तीर पर एक सुन्दर पहाड़ था।
हनुमान् जी खेल से ही कूद कर उसके ऊपर चढ़ गए॥
फिर वारंवार रामचन्द्रजी का स्मरण करके,बड़े पराक्रम के साथ हनुमानजी ने गर्जना की॥

हनुमानजी, श्रीराम के बाण जैसे तेज़ गति से, लंका की ओर जाते है-
जेहिं गिरि चरन देइ हनुमंता।
चलेउ सो गा पाताल तुरंता॥
जिमि अमोघ रघुपति कर बाना।
एही भाँति चलेउ हनुमाना॥4॥
जिस पहाड़ पर हनुमानजी ने पाँव रखे थे,वह पहाड़ तुरंत पाताल के अन्दर चला गया और जैसे श्रीरामचंद्रजी का अमोघ बाण जाता है,ऐसे हनुमानजी वहा से लंका की ओर चले॥

मैनाक पर्वत का प्रसंग:
समुद्र ने मैनाक पर्वत को हनुमानजी की सेवा के लिए भेजा-
जलनिधि रघुपति दूत बिचारी।
तैं मैनाक होहि श्रम हारी॥5॥
समुद्र ने हनुमानजी को श्रीराम का दूत जानकर मैनाक नाम पर्वत से कहा की –हे मैनाक, तू इनकी थकावट दूर करने वाला हो,इनको ठहरा कर श्रम मिटानेवाला हो,॥

मैनाक पर्वत हनुमानजी से विश्राम करने के लिए कहता है-
सिन्धुवचन सुनी कान, तुरत उठेउ मैनाक तब।
कपिकहँ कीन्ह प्रणाम, बार बार कर जोरिकै॥
समुद्रके वचन कानो में पड़ते ही
मैनाक पर्वत वहांसे तुरंत ऊपर को उठ गया,जिससे हनुमानजी उसपर बैठकर थोड़ी देर आराम कर सके और हनुमान जी के पास आकर,वारंवार हाथ जोड़कर, उसने हनुमानजीको प्रणाम किया॥

🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय🌹

©Vikas Sharma Shivaaya' ऊँ हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट:
 ये अष्टदशाक्षर मंत्र दिव्य प्रभाव देता है, मंत्र महोदधी में कहा गया है, जिस घर में इस मंत्र का जाप होता है, वहां कभी भी कोई अनिष्ट नहीं होता। खुशहाली और सकारात्मकता का माहौल हर तरफ रहता है।

शत्रु और रोगों पर विजय-
 ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय सर्वशत्रुसंहारणाय सर्वरोग हराय सर्ववशीकरणाय रामदूताय स्वाहा। 

                    "सुन्दरकांड"
सुन्दरकांड में 526 चौपाइयाँ,
ऊँ हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट:
 ये अष्टदशाक्षर मंत्र दिव्य प्रभाव देता है, मंत्र महोदधी में कहा गया है, जिस घर में इस मंत्र का जाप होता है, वहां कभी भी कोई अनिष्ट नहीं होता। खुशहाली और सकारात्मकता का माहौल हर तरफ रहता है।

शत्रु और रोगों पर विजय-
 ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय सर्वशत्रुसंहारणाय सर्वरोग हराय सर्ववशीकरणाय रामदूताय स्वाहा। 

                    "सुन्दरकांड"
सुन्दरकांड में 526 चौपाइयाँ,
60 दोहे, 6 छंद और 3 श्लोक है।

सुन्दरकांड में 5 से 7 चौपाइयों के बाद 1 दोहा आता है।

हनुमानजी वानरों को समझाते है-
जामवंत के बचन सुहाए।
सुनि हनुमंत हृदय अति भाए॥
तब लगि मोहि परिखेहु तुम्ह भाई।
सहि दुख कंद मूल फल खाई॥1॥
जाम्बवान के (सुन्दर, सुहावने) वचन सुन कर हनुमानजी को अपने मन में वे वचन बहुत अच्छे लगे और हनुमानजी ने कहा की – हे भाइयो!आप लोग कन्द, मूल व फल खाकर समय बिताना, औरतब तक मेरी राह देखना,
जब तक कि मैं सीताजी का पता लगाकर लौट ना आऊँ॥1॥

श्रीराम का कार्य करने पर मन को ख़ुशी मिलती है-
जब लगि आवौं सीतहि देखी।
होइहि काजु मोहि हरष बिसेषी॥
यह कहि नाइ सबन्हि कहुँ माथा।
चलेउ हरषि हियँ धरि रघुनाथा॥2॥
जब मै सीताजीको देखकर लौट आऊंगा,तब कार्य सिद्ध होने पर मन को बड़ा हर्ष होगा॥यह कहकर और सबको नमस्कार करके,रामचन्द्रजी का ह्रदय में ध्यान धरकर,प्रसन्न होकर हनुमानजी लंका जाने के लिए चले
2॥

हनुमानजी ने एक पहाड़ पर भगवान् श्रीराम का स्मरण किया-
सिंधु तीर एक भूधर सुंदर।
कौतुक कूदि चढ़ेउ ता ऊपर॥
बार-बार रघुबीर सँभारी।
तरकेउ पवनतनय बल भारी॥3॥
समुद्र के तीर पर एक सुन्दर पहाड़ था।
हनुमान् जी खेल से ही कूद कर उसके ऊपर चढ़ गए॥
फिर वारंवार रामचन्द्रजी का स्मरण करके,बड़े पराक्रम के साथ हनुमानजी ने गर्जना की॥

हनुमानजी, श्रीराम के बाण जैसे तेज़ गति से, लंका की ओर जाते है-
जेहिं गिरि चरन देइ हनुमंता।
चलेउ सो गा पाताल तुरंता॥
जिमि अमोघ रघुपति कर बाना।
एही भाँति चलेउ हनुमाना॥4॥
जिस पहाड़ पर हनुमानजी ने पाँव रखे थे,वह पहाड़ तुरंत पाताल के अन्दर चला गया और जैसे श्रीरामचंद्रजी का अमोघ बाण जाता है,ऐसे हनुमानजी वहा से लंका की ओर चले॥

मैनाक पर्वत का प्रसंग:
समुद्र ने मैनाक पर्वत को हनुमानजी की सेवा के लिए भेजा-
जलनिधि रघुपति दूत बिचारी।
तैं मैनाक होहि श्रम हारी॥5॥
समुद्र ने हनुमानजी को श्रीराम का दूत जानकर मैनाक नाम पर्वत से कहा की –हे मैनाक, तू इनकी थकावट दूर करने वाला हो,इनको ठहरा कर श्रम मिटानेवाला हो,॥

मैनाक पर्वत हनुमानजी से विश्राम करने के लिए कहता है-
सिन्धुवचन सुनी कान, तुरत उठेउ मैनाक तब।
कपिकहँ कीन्ह प्रणाम, बार बार कर जोरिकै॥
समुद्रके वचन कानो में पड़ते ही
मैनाक पर्वत वहांसे तुरंत ऊपर को उठ गया,जिससे हनुमानजी उसपर बैठकर थोड़ी देर आराम कर सके और हनुमान जी के पास आकर,वारंवार हाथ जोड़कर, उसने हनुमानजीको प्रणाम किया॥

🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय🌹

©Vikas Sharma Shivaaya' ऊँ हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट:
 ये अष्टदशाक्षर मंत्र दिव्य प्रभाव देता है, मंत्र महोदधी में कहा गया है, जिस घर में इस मंत्र का जाप होता है, वहां कभी भी कोई अनिष्ट नहीं होता। खुशहाली और सकारात्मकता का माहौल हर तरफ रहता है।

शत्रु और रोगों पर विजय-
 ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय सर्वशत्रुसंहारणाय सर्वरोग हराय सर्ववशीकरणाय रामदूताय स्वाहा। 

                    "सुन्दरकांड"
सुन्दरकांड में 526 चौपाइयाँ,