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साथी सफर में हैं और हम घर पे बैठे हैं,, बुरे नसीबा

साथी सफर में हैं और हम घर पे बैठे हैं,,
बुरे नसीबा के संग हम अधर में बैठे हैं।।
राहुल छतरपुरिया मुकम्मल नही हो पर मेरे हो,,
तुम मेरे संग अग्नि के बिन फेरे हो।।
साथी सफर में हैं और हम घर पे बैठे हैं,,
बुरे नसीबा के संग हम अधर में बैठे हैं।।
राहुल छतरपुरिया मुकम्मल नही हो पर मेरे हो,,
तुम मेरे संग अग्नि के बिन फेरे हो।।

मुकम्मल नही हो पर मेरे हो,, तुम मेरे संग अग्नि के बिन फेरे हो।।