ज़िदंगी की कशमकश का,बस इतना सा फ़साना है दर-ब-दर भटकना है,लौटकर फिर घर आना है पाने को भी कुछ नहीं है,जो मिला है वो भी गंवाना है सारे उस डाल के पंछी हैं,जिसे छोड़ के एक दिन उड़ जाना है ज़िदंगी गुज़र रही है,ख़ुद को ये समझाना है वक्त बहुत कम है,अपने लिए लम्हा एक चुराना है पुराना दौर ख़त्म होकर,नया दौर शुरू हुआ है कहीं शाम ढ़ल रही है,कहीं दिया एक जलाना है कुछ जीत भी मिली है,कुछ हार का सिलसिला है कुछ कदम हम चल चुके हैं,बहुत दूर अभी जाना है हमनें तो कह दिया है,अब तुम भी कुछ कहो ना मासूम ये दिल बहुत है और मतलबी ये ज़माना है... © abhishek trehan #zindagi #kashmakash #safar #talash_khud_ki #lifelessons #lifestory #kavita #shayari