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तपती दोपहरी में जब भी जलते थे मेरे पाँव। सुकून मि

तपती दोपहरी में जब भी
जलते थे मेरे पाँव।
 सुकून मिलता था जब
 पाता था पीपल की छांव।
 अब पीपल का वृक्ष ही नहीं है 
 तो छांव की करू क्या बात।
 दिन में खग, विहग का ठौर था
 बूढों की गपशप की रात।
 पीपल के वृक्ष की छांव
 कई जाने अंजानो की थी ठौर।
 वृक्ष की परवाह अब नहीं होती,
 जो करते थे, वे थे कोई और।

©Kamlesh Kandpal #chanw
तपती दोपहरी में जब भी
जलते थे मेरे पाँव।
 सुकून मिलता था जब
 पाता था पीपल की छांव।
 अब पीपल का वृक्ष ही नहीं है 
 तो छांव की करू क्या बात।
 दिन में खग, विहग का ठौर था
 बूढों की गपशप की रात।
 पीपल के वृक्ष की छांव
 कई जाने अंजानो की थी ठौर।
 वृक्ष की परवाह अब नहीं होती,
 जो करते थे, वे थे कोई और।

©Kamlesh Kandpal #chanw
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Kamlesh Kandpal

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