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मैं हर रोज टूट रहा हूं, खुद से खुद को जोड़ रहा हूं

मैं हर रोज टूट रहा हूं, खुद से खुद को जोड़ रहा हूं,
जीने की अब ललक नही है, फिर भी देखो जी रहा हूं ।

तना बना सब का सुन के मंजिल को अपनी खोज रहा हूं,
 मिल जायेगी मंज़िल जब बतला दूंगा, दुनिया अब छोड़ रहा हूं ।।


© शुभम् कातिब

©शुभम् कातिब
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कविता शायरी sad😔 SAD Love Hindi

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