दिन बेखबर है रात के पहलू में उसका अंत छिपा है रात को तो सूरज के दीदार ही न हुए आग की लपटें तो मतवाली हो रही हैं वजूद जमीन से है छूना आसमान को चाहती हैं पत्तों पर ओस की बूंदें चमक रही हैं अंश ये किसी समुंदर के आब का तो नहीं शायर आयुष कुमार गौतम दिन बेखबर है