मत हो उदास तू रे मन बाकी है बहुत जीवन उठ खड़ा हो,भी जा, मत लड़खड़ा रे तू तन छोड़ भी दे रे तू नींद, मत बना इसे तू सौतन मत हो उदास तू रे मन बाकी है बहुत चमन बुरी सोच का कुचल फन अपने को बना स्वस्थ जन नकारात्मक भावों का, कर भी दे अब तू दमन मत हो उदास तू रे मन छूना है अभी तुझे गगन श्रम की बजा तू ऐसी बंशी सूर्य की स्वर्ण रश्मि हो जैसी झूम उठे, पत्ता-पत्ता डाली ये उपवन मत हो उदास रे तू मन, अभी खिलाना है,सुमन तू कर्म कर,किसी से न डर फिर पायेगा मंजिल का बदन उससे पहले जला दूषित मन, नई उषा का ले ले तू यौवन जुट जा लक्ष्य में, भूल जा पश्च में क्या खोया धन बदलेगी उदासी भी हंसी में, तू खिलखला एकबार रे मन दिल से विजय उदास मन