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किसी भी व्यक्ति के स्वभाव का एक प्राकृतिक भाव है-

किसी भी व्यक्ति के स्वभाव का एक प्राकृतिक भाव है- क्रोध।
इतिहास उठाकर देखें तो पता चलेगा कि क्रोध की भी अपनी अहम् भूमिका रही है।
अनेक अवसरों पर क्रोध ने इतिहास को नए मोड़ दिए हैं।
क्रोध को शारीरिक शक्ति और अहंकार का सूचक भी माना गया है।
भय पैदा करने में भी क्रोध की अपनी भूमिका रही है।
क्रोध ने बडे-बड़े ऋषियों को शाप देने जैसी नकारात्मक भूमिका में डाला है। दुर्वासा और लक्ष्मण के व्यक्तित्व क्रोध के ही पर्याय भी बने। कौन व्यक्ति होगा इस पृथ्वी पर जिसे क्रोध नहीं आता? क्रोध अनेक प्रकार के आवेशों और आवेगों का निमित्त बनता है। अपराधों का मूल निमित्त क्रोध को ही माना जाता है। यही कारण है कि क्रोध अपनी अतुल शक्ति के उपरान्त भी अवांछनीय माना जाता है। क्रोध को उपशान्त करने के बारे में लगभग सभी धर्म-ग्रंथ एकमत हैं। हर व्यक्ति अपने क्रोध को दबाना चाहता है। शांत और निर्मल प्रकृति का दिखाई देना चाहता है। क्रोध को जीवन में किसी भी प्रकार का सम्मान प्राप्त नहीं है।

हमारा जीवन प्राण और ऊर्जा के सहारे चलता है। मन, बुद्धि, शरीर आदि सभी का संचालन प्राण और ऊर्जाओं से होता है। हम पार्थिव प्राणी हैं, अत: हमारा मूल शक्ति-स्त्रोत पृथ्वी है। हम गुरूत्वाकर्षण द्वारा पृथ्वी-केन्द्र से आबद्ध होते हैं। यहीं से हमारी मूल ऊर्जा आती है। ऋषि, पितृ और देव-प्राण हमें अंतरिक्ष से प्राप्त होते हैं।

व्यक्तित्व के अनुसार ऊर्जा शक्तियों की अभिव्यक्ति होती है। क्रोध भी एक अभिव्यक्ति है। मूलाधार चूंकि शारीरिक शक्तियों की भौतिक अभिव्यक्ति का स्थान है, अत: यहां एकत्र ऊजाएं क्रोध, कामना, इन्द्रिय सुख, कला, कृतित्व, शक्ति, वैभव आदि विषयों से जुड़ी होती हैं। एक भाव को रोकने का प्रयास करें तो दूसरी अभिव्यक्ति होने लगेगी। क्रोध भी इसी प्रकार स्वयं में कुछ नहीं है। एक अभिव्यक्ति मात्र है, जिसकी नकारात्मक भूमिका होने के कारण उसको उत्तम नहीं कहा जाता।

आप क्रोध आने पर क्या करेंगे, इसका आकलन करें। क्या-क्या करेंगे, यह क्रम देखें तो इसकी परिणति का अनुमान भी होगा। भाव-परिवर्तन के साथ आप क्रोध के आवेग की दिशा बदल सकते हैं। आपने भी अनेक बार अनुभव किया होगा कि कुछ विचार करने के बाद जब क्रोध शान्त होता प्रतीत होता है तो अन्य प्रकार की अभिव्यक्ति की अभिलाषा तुरन्त मन में उठने लगती है। यह अभिव्यक्ति भी जीवन-शक्ति की तरह दिखाई देती है, जो उतनी ही गहन होती है जितना कि क्रोध, अर्थात- क्रोध भी एक जीवन-शक्ति है, ऊर्जा से ओत-प्रोत है। मात्र इसको दिशा देने की जरूरत है।
किसी भी व्यक्ति के स्वभाव का एक प्राकृतिक भाव है- क्रोध।
इतिहास उठाकर देखें तो पता चलेगा कि क्रोध की भी अपनी अहम् भूमिका रही है।
अनेक अवसरों पर क्रोध ने इतिहास को नए मोड़ दिए हैं।
क्रोध को शारीरिक शक्ति और अहंकार का सूचक भी माना गया है।
भय पैदा करने में भी क्रोध की अपनी भूमिका रही है।
क्रोध ने बडे-बड़े ऋषियों को शाप देने जैसी नकारात्मक भूमिका में डाला है। दुर्वासा और लक्ष्मण के व्यक्तित्व क्रोध के ही पर्याय भी बने। कौन व्यक्ति होगा इस पृथ्वी पर जिसे क्रोध नहीं आता? क्रोध अनेक प्रकार के आवेशों और आवेगों का निमित्त बनता है। अपराधों का मूल निमित्त क्रोध को ही माना जाता है। यही कारण है कि क्रोध अपनी अतुल शक्ति के उपरान्त भी अवांछनीय माना जाता है। क्रोध को उपशान्त करने के बारे में लगभग सभी धर्म-ग्रंथ एकमत हैं। हर व्यक्ति अपने क्रोध को दबाना चाहता है। शांत और निर्मल प्रकृति का दिखाई देना चाहता है। क्रोध को जीवन में किसी भी प्रकार का सम्मान प्राप्त नहीं है।

हमारा जीवन प्राण और ऊर्जा के सहारे चलता है। मन, बुद्धि, शरीर आदि सभी का संचालन प्राण और ऊर्जाओं से होता है। हम पार्थिव प्राणी हैं, अत: हमारा मूल शक्ति-स्त्रोत पृथ्वी है। हम गुरूत्वाकर्षण द्वारा पृथ्वी-केन्द्र से आबद्ध होते हैं। यहीं से हमारी मूल ऊर्जा आती है। ऋषि, पितृ और देव-प्राण हमें अंतरिक्ष से प्राप्त होते हैं।

व्यक्तित्व के अनुसार ऊर्जा शक्तियों की अभिव्यक्ति होती है। क्रोध भी एक अभिव्यक्ति है। मूलाधार चूंकि शारीरिक शक्तियों की भौतिक अभिव्यक्ति का स्थान है, अत: यहां एकत्र ऊजाएं क्रोध, कामना, इन्द्रिय सुख, कला, कृतित्व, शक्ति, वैभव आदि विषयों से जुड़ी होती हैं। एक भाव को रोकने का प्रयास करें तो दूसरी अभिव्यक्ति होने लगेगी। क्रोध भी इसी प्रकार स्वयं में कुछ नहीं है। एक अभिव्यक्ति मात्र है, जिसकी नकारात्मक भूमिका होने के कारण उसको उत्तम नहीं कहा जाता।

आप क्रोध आने पर क्या करेंगे, इसका आकलन करें। क्या-क्या करेंगे, यह क्रम देखें तो इसकी परिणति का अनुमान भी होगा। भाव-परिवर्तन के साथ आप क्रोध के आवेग की दिशा बदल सकते हैं। आपने भी अनेक बार अनुभव किया होगा कि कुछ विचार करने के बाद जब क्रोध शान्त होता प्रतीत होता है तो अन्य प्रकार की अभिव्यक्ति की अभिलाषा तुरन्त मन में उठने लगती है। यह अभिव्यक्ति भी जीवन-शक्ति की तरह दिखाई देती है, जो उतनी ही गहन होती है जितना कि क्रोध, अर्थात- क्रोध भी एक जीवन-शक्ति है, ऊर्जा से ओत-प्रोत है। मात्र इसको दिशा देने की जरूरत है।