उड़ गए वो पन्ने,जो लिखें थे मैंने उनके लिए अपने कलम से, अपने ही मन से.... उनकों पसंद आए इस कदर कि गले लगा लिया मुझे कस के जैसे कोई मैं थी उनकी सच्ची यूहीं चलते रहे कदम होले होले,हम लिखते गयें वो पन्ने अपने मन से.... उनहे तरक्की हमारी तरकीब से मिलने लगी हम खुश हुए की हमनें किसी की दुनिया में रंग भर दिए वो पास आए हमारे फिर से सीमट गए हमें हमेशा की तरहा अच्छा लगा,मगर उनहोंने मुझे छोडा नहीं और वो मेरी आबरू के चिपक गये,बहुत मुश्किल हालत थे वो आखिरकार उनहे खंजर से वार करना ही पडा फिर..... उड़ गए वो पन्ने जो मेरी आबरू के रकत से शने हुए थे मै नहीं थी ऐसी ,जो मे बन गयी... बस अफसोस कि.. उड़ गए वो पन्ने...............। usha ✍ # udd gye