एक शाख है ये जो जमीन पर झुकी सी दिखती है ..... नजाने कितने तरह के पंछियों से अटी पड़ी है सब के कुछ अलग अलग मिजाज हैं , यहां रंग एक नहीं हजार हैं ......... कोई बिन्दास बैठा है ,कोई शर्मिला सजा है ज़रा देखो कोई खुद पर हीं अडा बैठा है दरखत्त के इस ओट पर नजाने , किताना प्यार पसरा है ... सरलता का मान रखे सबकी पहचान रखा है । आओ चलो मुस्कुरा पड़े हम ....... ठहाकों और मस्तानो के स्कूल चलें हम ।।