======================== *मैंने मासूमों को बिकते देखा* ======================== जिन मासूमों की हँसी से, घर का आँगन गुलज़ार होते देखा। रो पड़ा ये हृदय, जब मजदूरी, भिक्षावृत्ति और जिस्मफ़रोशी में, उनकी गरिमा को तार-तार होते देखा।। जिनकी किलकारियों से, पूरे घर को चहकते देखा। गाँव के बाग़ान को , जिन फूलों की ख़ुश्बू से महकते देखा। रो पड़ा ये हृदय, जब उन्हें ग़रीबी से बेबस , कभी बहकते तो कभी बिकते देखा।। जिन बच्चियों की आँखों में, एक सुनहरे कल के सपने को पलते देखा। रो पड़ा ये हृदय, जब चंद रुपयों के लिए, उन्हें किसी की बहु, किसी की पत्नी, और कच्ची उम्र में माँ बनते देखा।। इन सभी अमानवीय यातनाओं पर, प्रशासन से आम जनता को सवाल करते देखा। रो पड़ा ये हृदय, जब इस अचेतन किंतु तथाकथित प्रबुद्ध समाज को हाथ पर हाथ धरे , सिर्फ़ इन मुद्दों पर बतकही करते देखा।। यूँ ही बाज़ार से गुज़रते हुए, इंसानों को इंसानों के हाथ सरेआम बिकते देखा।। ©Muskan Satyam #Childhood #CHILD_LABOUR #SayNoToChildLabour #SayNoToChildmarriage #SayNoToChildAbuse