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यादों की एक खिड़की, खुली रह गई..! ज़िन्दगी बेवज़ह क

 यादों की एक खिड़की,
खुली रह गई..!

ज़िन्दगी बेवज़ह की,
कहासुनी में बह गई..!

तलाश थी हमें जिसकी,
वो तमाशा बना गई..!

सारे अरमानों की,
क़ब्र बना गई..!

हताशा निराशा के बादल,
छाये रहते हैं मन पर..!

मौत की दस्तक,
ख़त्म ज़िन्दगी की पुस्तक..!

लेख तरह तरह के,
यूँ ही विरह के रह गई..!

©SHIVA KANT
  #cycle #khidki