खो रही है खासियत सब दौड़ की इस होड़ में जाने अब फिर कब मिले वो आगे अब किस मोड़ में आलाव की चौपाल गांवों में भी अब लगती नहीं ना सुबह ना शाम किस्सा नानी अब कहती नही ना चांद तारे देखकर लल्ला लालायित है कहीं वायु दूषित वासी दूषित हर हवा अब है प्रदूषित जलने को बूढ़े याद में दिल लाव मिलता है नहीं बढ़ रहे हैं भाव सबके चाव मिलता है नही ©दीपेश #अलाव #Winter