वेदना है भरी वेदना इस तन में, हे वेणु! तुम कैसे जानो? मै विरह कलित हूँ सावन में, तुम राग अमंद मानस तानो। तुम पवन मिले, धरती-अम्बर, तुम पूर्ण हुए, अब जल-जलधर, तुम मधुर शब्द गुंजाते हो, व्यंगित होते हैं हृदय पर । पर करके तुमको अवहेलित, मैं भी तो सार मिटाता हूं, मैं विरहाकुल हूँ इस कारण, हे युगल! झुलसता जाता हूँ। तुम पवन मिलो और शब्द बने, शब्दों की निर्मल धारा हो, तुम सावन के मीत बनो, ये सावन तुमको प्यारा हो। मैं भी एक स्वप्निल जगत बना, एक भीना राग बनाऊंगा, तब जाकर विरह - वेदना से निज का संबध मिटाऊंगा।। - Nitin Kr Harit वेदना है भरी वेदना इस तन में, हे वेणु! तुम कैसे जानो? मै विरह कलित हूँ सावन में, तुम राग अमंद मानस तानो। तुम पवन मिले, धरती-अम्बर, तुम पूर्ण हुए, अब जल-जलधर, तुम मधुर शब्द गुंजाते हो, व्यंगित होते हैं हृदय पर । पर करके तुमको अवहेलित, मैं भी तो सार मिटाता हूं, मैं विरहाकुल हूँ इस कारण, हे युगल! झुलसता जाता हूँ। तुम पवन मिलो और शब्द बने, शब्दों की निर्मल धारा हो,