*कविता: हिंदी है माँ मेरी* ~~ _*कवि:रौशन सुजीत रात सूरज*_ हिंदी है माँ मेरी, वही दुनिया-जहान मेरी। हंसना-मुस्कुराना, रोना-धोना, पढ़ना-लिखना, जज्बातों को बयां करना, हिंदी से ही सीखा हूँ, अपना जीवन हिंदी में ही देखा हूँ। है यह मृदुल-भावनाओं की साया, है यह अमृत,जीवन की पाया, यह करती झंकृत तन-मन में, समाई है पावन धरा की कण-कण में, हिंदी है भाषाओं में सूरी, वही दुनिया-जहान मेरी। हिंदी है भाषाओं में सरसा, प्रेम बाँटती, प्रेम की भाषा, करती पूर्ण पावन अभिलाषा, हिंदी की है यही परिभाषा।। (दिनांक: १०-०१-२०२१) हिंदी है माँ मेरी hindi hai maa meri