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*विवाह* विवाह.. संबंध जोड़ने के लिए होता है किन्तु

*विवाह*
विवाह.. संबंध जोड़ने के लिए होता है किन्तु आज कल तो विवाह संबंध तोड़ने का काम करने लगा है , विवाह होते ही पिता-पुत्र, भाई-भाई, सास-बहू, देवरानी-जेठानी,यहाँ तक कि विवाहोपरांत कुछ ही सालों में पति-पत्नी भी अलग-अलग हो जाते हैं। बचपन का परिवार विवाह होते ही बेकार हो जाता है ,पराये घर वाला सगा , खासमखास हो जाता है और उस एक के चक्कर में सास-ससुर /माता-पिता का बसा बसाया घर चौपट हो जाता है !! ये कैसा प्रेम है,कैसा आकर्षण है जो अँधा बना देता है केवल जीवन साथी ही हर एंगल से सही नजर आता है । जबकि होता ऐसा बिल्कुल भी नहीं है , हकीकत कुछ और ही होती है । लेकिन एक बात सच है आजकल विवाह के कारण ही परिवार टूट रहे हैं । बूढ़े मां-बाप बेसहारा हो रहे हैं .. अरे लानत है ऐसी शादियों पर जो घर जोड़कर ना रख सकें । सास-ससुर की सेवा होती नहीं , घर को जोड़कर रखना आता नहीं , ससुराल में प्रेम लुटाना आता नहीं ,चले हैं शादी करने । ऐसे लोग शादी के लायक ही नहीं होते जो दोनों परिवारों को एक ना बना सकें , ऐसे लोग केवल कामी , और स्वार्थी होते हैं , जो अपने मतलब से  पति/पत्नी की अंधभक्ति में लीन रहते हैं । और कुछ ही सालों में एक दूसरे से ऊबकर तलाक ले लेते हैं । वाह रे विवाह !!!
लेखिका/कवयित्री-प्रतिभा द्विवेदी मुस्कान ©
 सागर मध्यप्रदेश ( 23 मई 2022 )

©Pratibha Dwivedi urf muskan
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