वे कहते थे कि – सुगंध देने वाले फूलों को पात्र में रखकर भगवान की पत्थर की मूर्ति पर अर्पित करने के बजाय चारों ओर बसे हुए लोगों की सेवा के लिए अपना खून खपाओ. भूखे लोगों को रोटी खिलाई, तो ही तुम्हारा जन्म सार्थक होगा. पूजा के उन फूलों से तो मेरा झाड़ू ही श्रेष्ठ है. वे संतों के वचन सुनाया करते थे. विशेष रूप से कबीर, संत तुकाराम, संत ज्ञानेश्वर आदि के काव्यांश जनता को सुनाते थे.