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White छा गया सर पे मिरे गर्द का धुँदला बादल अब

White 

छा गया सर पे मिरे गर्द का धुँदला बादल 
अब के सावन भी गया मुझ पे न बरसा बादल 

सीप बुझते हुए सूरज की तरफ़ देखते हैं 
कैसी बरसात मिरी जान कहाँ का बादल 

वो भी दिन थे कि टपकता था छतों से पहरों 
अब के पल भर भी मुंडेरों पे न ठहरा बादल 

फ़र्श पर गिर के बिखरता रहा पारे की तरह 
सब्ज़ बाग़ों में मिरे बा'द न झूला बादल 
लाख चाहा न मिली प्यार की प्यासी आग़ोश 
घर की दीवार से सर फोड़ के रोया बादल 

आज की शब भी जहन्नम में सुलगते ही कटी 
आज की शब भी तो बोतल से न छलका बादल

©aditi the writer
  #दर्द  आगाज़  Niaz (Harf)  Kundan Dubey #big poet