"इंक़लाब ज़िंदाबाद" जला कर गए जो आग,इन सीनों में वो "आज़ाद", ज़हन में हमारे आज भी है वो "इंकलाब जिंदाबाद"।। ... बहती थी रगों में ही आज़ादी की कामना, नामंजूर था करना जल्लादों से याचना। लगी थी पीछे दुश्मनों की टोली और, पास बची थी एक ही गोली.. जीते जी गुलाम बन ना सके वो, स्वयं के रक्त से खेल ली होली। गुलामी की ठंडी बर्फ पे दहकते अंगारों सी, वो आंखें थीं आबाद,वो बातें थीं आबाद..। ज़हन में हमारे आज भी है वो"इंकलाब जिंदाबाद"।। read the caption... जला कर गए जो आग,इन सीनों में वो "आज़ाद", ज़हन में हमारे आज भी है वो "इंकलाब जिंदाबाद"।। जब सौ दुश्मनों के बीच वो अकेले थे, जब फड़कते कोड़े बदन पे झेले थे। जब छोड़ा था घरों को देश के लिए, जब तोड़ा था दिलों को उद्देश्य के लिए। अनगिनत लिखे हैं इतिहास के पन्नों पे, कुर्बानियों के किस्से निर्विवाद..।