डरी हुईं सी आहें मिल जातीं हैं हर चौराहे और सुनसान सड़कों पर दिल पर डर का साया आंखों में अश्क के बादल सांसे सिसक रहीं हैं थक के टूट रहीं हैं हाथ कांप रहें हैं पैरों में लड़खड़ाहट डरी सहमी ये शरीर डर में घबराहट रात की काले साए में पेड़ों के पीछे चुप बेजान सी छुपी है। ♥️ Challenge-629 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ विषय को अपने शब्दों से सजाइए। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।