वो मोम हैं,मैं हूं पत्थर,हकीकत बदल रही है मैं टूटकर बिखर रहा हूं,वो पिघलकर फिर जुड़ रही है भूल जाऊं मैं तुम्हें क्या,अब मुनासिब ये नहीं है तेरी बेरुखी और मेरी तमन्ना,ज़बरदस्ती तो नहीं है मैं क्या करूं क्यों मुझमें अब सब्र क्यूं नहीं हैं मेरी आदतें और तेरी बेख्याली,मुझसे संभलती अब नहीं हैं तारों सा इश्क मेरा,टूटकर गिर रहा है लोग मांगते है दुआ में और उन्हें ख़बर तक नहीं है... © trehan abhishek ♥️ Challenge-680 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें। ♥️ अन्य नियम एवं निर्देशों के लिए पिन पोस्ट 📌 पढ़ें।