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कॉलेज का पहला दिन था।प्रार्थना के बाद सभी लोग टाइम

कॉलेज का पहला दिन था।प्रार्थना के बाद सभी लोग टाइम टेबल देखने पहुंच गए ।इंजीनियरिंग की पहली क्लास थी वो हमारी।जब सब्जेक्ट्स के नाम के आगे देख रहा था तो उनके नीचे ही टीचर्स के नाम भी लिखे हुए थे।
Applied Math-MRK ,Applied Physics- AKS
जूनियर्स में किसी को भी AKS का फुलफॉर्म नहीं पता था इस लिए हम सभी लोगो ने इसको अक्स पढ़ना शुरूकर दिया।मैथ की क्लास के बाद जब फिजिक्स की क्लास आई तो अक्स सर से हम सभी पहली बार रूबरू हुए थे।सीनियर्स के द्धारा बनाया गया खौफ बिलकुल सच सा लग रहा था।पहली ही क्लास में तेजतर्रार अंग्रेजी ने इतना तो समझा दिया था की शायद रिमेडियल ही बाकी इस सब्जेक्ट में।सर का मैग्नेटिजम और मैग्नेटाइज में अंतर करना हमारे लिए बहुत बड़ा टास्क हुआ करता था।संपूर्ण CA  में 2-3 नंबर ही हर कोई पाता था।धीरे धीरे हम सर को समझने लगे। उनका हंसना और गुस्सा करना दोनो सीमित थे।परंतु वक्त के साथ हमारे लिए उनका प्रेम असीमित हो गया था।इसका प्रमुख उदाहरण था किसी भी बच्चे का उस विषय में रिमीडियल ना लगना।हम लोग डिप्लोमा के द्वितीय वर्ष में आ गए थे। उस दिन हमारे दोस्त आदर्श ने हमे बताया था कि सर का पूरा नाम आनंद कुमार शर्मा है और वो भी एक हॉस्टलर थे जो कमरा न. 38 में रह चुके हैं।उस समय के बाद जब भी सर को पढ़ाता हुए देखते तो खुद पर गर्व करते थे कि एक अरसे पहले हम भी इनके विद्यार्थी थे।मुझे आज भी याद है मेरी आपसे आखिरी मुलाकात फेयरवेल के दिन हुई थी।जब मैं कविता में "अक्स सर की फिजिक्स ने हमको बहुत डराया था,मैग्नेटिज्म और मैग्नेटाइज का अंतर हमे समझ न आया था" वाली पंक्ति पढ़ी थी।आपकी वो मुस्कान मेरे ह्रदय में आज भी है।
आज जब आपके पंचतत्व में विलीन होने की खबर सुनी तो मन ठहर सा गया।मन में वो सब किस्से उमड़ गए जो आपसे जुड़े हुए हुए थे।कई यादें हैं जो अब सिर्फ याद ही हैं।आपका जाना हम विद्यार्थियों और सम्पूर्ण कॉलेज के लिए एक क्षति है जो शायद कभी पूर्ण ना हो पाएगी।आप सदैव याद आओगे सर ,अलविदा!आपका आज्ञाकारी भूतपूर्व शिष्य
...#जलज कुमार

©JALAJ KUMAR RATHOUR कॉलेज का पहला दिन था।प्रार्थना के बाद सभी लोग टाइम टेबल देखने पहुंच गए ।इंजीनियरिंग की पहली क्लास थी वो हमारी।जब सब्जेक्ट्स के नाम के आगे देख रहा था तो उनके नीचे ही टीचर्स के नाम भी लिखे हुए थे।
Applied Math-MRK ,Applied Physics- AKS
जूनियर्स में किसी को भी AKS का फुलफॉर्म नहीं पता था इस लिए हम सभी लोगो ने इसको अक्स पढ़ना शुरूकर दिया।मैथ की क्लास के बाद जब फिजिक्स की क्लास आई तो अक्स सर से हम सभी पहली बार रूबरू हुए थे।सीनियर्स के द्धारा बनाया गया खौफ बिलकुल सच सा लग रहा था।पहली ही क्लास में तेजतर्रार अंग्रेजी ने इतना तो समझा दिया था की शायद रिमेडियल ही बाकी इस सब्जेक्ट में।सर का मैग्नेटिजम और मैग्नेटाइज में अंतर करना हमारे लिए बहुत बड़ा टास्क हुआ करता था।संपूर्ण CA  में 2-3 नंबर ही हर कोई पाता था।धीरे धीरे हम सर को समझने लगे। उनका हंसना और गुस्सा करना दोनो सीमित थे।परंतु वक्त के साथ हमारे लिए उनका प्रेम असीमित हो गया था।इसका प्रमुख उदाहरण था किसी भी बच्चे का उस विषय में रिमीडियल ना लगना।हम लोग डिप्लोमा के द्वितीय वर्ष में आ गए थे। उस दिन हमारे दोस्त आदर्श ने हमे बताया था कि सर का पूरा नाम आनंद कुमार शर्मा है और वो भी एक हॉस्टलर थे जो कमरा न. 38 में रह चुके हैं।उस समय के बाद जब भी सर को पढ़ाता हुए देखते तो खुद पर गर्व करते थे कि एक अरसे पहले हम भी इनके विद्यार्थी थे।मुझे आज भी याद है मेरी आपसे आखिरी मुलाकात फेयरवेल के दिन हुई थी।जब मैं कविता में "अक्स सर की फिजिक्स ने हमको बहुत डराया था,मैग्नेटिज्म और मैग्नेटाइज का अंतर हमे समझ न आया था" वाली पंक्ति पढ़ी थी।आपकी वो मुस्कान मेरे ह्रदय में आज भी है।
आज जब आपके पंचतत्व में विलीन होने की खबर सुनी तो मन ठहर सा गया।मन में वो सब किस्से उमड़ गए जो आपसे जुड़े हुए हुए थे।कई यादें हैं जो अब सिर्फ याद ही हैं।आपका जाना हम विद्यार्थियों और सम्पूर्ण कॉलेज के लिए एक क्षति है जो शायद कभी पूर्ण ना हो पाएगी।
आप सदैव याद आओगे सर ,अलविदा!
आपका आज्ञाकारी भूतपूर्व शिष्य
...#जलज कुमार
कॉलेज का पहला दिन था।प्रार्थना के बाद सभी लोग टाइम टेबल देखने पहुंच गए ।इंजीनियरिंग की पहली क्लास थी वो हमारी।जब सब्जेक्ट्स के नाम के आगे देख रहा था तो उनके नीचे ही टीचर्स के नाम भी लिखे हुए थे।
Applied Math-MRK ,Applied Physics- AKS
जूनियर्स में किसी को भी AKS का फुलफॉर्म नहीं पता था इस लिए हम सभी लोगो ने इसको अक्स पढ़ना शुरूकर दिया।मैथ की क्लास के बाद जब फिजिक्स की क्लास आई तो अक्स सर से हम सभी पहली बार रूबरू हुए थे।सीनियर्स के द्धारा बनाया गया खौफ बिलकुल सच सा लग रहा था।पहली ही क्लास में तेजतर्रार अंग्रेजी ने इतना तो समझा दिया था की शायद रिमेडियल ही बाकी इस सब्जेक्ट में।सर का मैग्नेटिजम और मैग्नेटाइज में अंतर करना हमारे लिए बहुत बड़ा टास्क हुआ करता था।संपूर्ण CA  में 2-3 नंबर ही हर कोई पाता था।धीरे धीरे हम सर को समझने लगे। उनका हंसना और गुस्सा करना दोनो सीमित थे।परंतु वक्त के साथ हमारे लिए उनका प्रेम असीमित हो गया था।इसका प्रमुख उदाहरण था किसी भी बच्चे का उस विषय में रिमीडियल ना लगना।हम लोग डिप्लोमा के द्वितीय वर्ष में आ गए थे। उस दिन हमारे दोस्त आदर्श ने हमे बताया था कि सर का पूरा नाम आनंद कुमार शर्मा है और वो भी एक हॉस्टलर थे जो कमरा न. 38 में रह चुके हैं।उस समय के बाद जब भी सर को पढ़ाता हुए देखते तो खुद पर गर्व करते थे कि एक अरसे पहले हम भी इनके विद्यार्थी थे।मुझे आज भी याद है मेरी आपसे आखिरी मुलाकात फेयरवेल के दिन हुई थी।जब मैं कविता में "अक्स सर की फिजिक्स ने हमको बहुत डराया था,मैग्नेटिज्म और मैग्नेटाइज का अंतर हमे समझ न आया था" वाली पंक्ति पढ़ी थी।आपकी वो मुस्कान मेरे ह्रदय में आज भी है।
आज जब आपके पंचतत्व में विलीन होने की खबर सुनी तो मन ठहर सा गया।मन में वो सब किस्से उमड़ गए जो आपसे जुड़े हुए हुए थे।कई यादें हैं जो अब सिर्फ याद ही हैं।आपका जाना हम विद्यार्थियों और सम्पूर्ण कॉलेज के लिए एक क्षति है जो शायद कभी पूर्ण ना हो पाएगी।आप सदैव याद आओगे सर ,अलविदा!आपका आज्ञाकारी भूतपूर्व शिष्य
...#जलज कुमार

©JALAJ KUMAR RATHOUR कॉलेज का पहला दिन था।प्रार्थना के बाद सभी लोग टाइम टेबल देखने पहुंच गए ।इंजीनियरिंग की पहली क्लास थी वो हमारी।जब सब्जेक्ट्स के नाम के आगे देख रहा था तो उनके नीचे ही टीचर्स के नाम भी लिखे हुए थे।
Applied Math-MRK ,Applied Physics- AKS
जूनियर्स में किसी को भी AKS का फुलफॉर्म नहीं पता था इस लिए हम सभी लोगो ने इसको अक्स पढ़ना शुरूकर दिया।मैथ की क्लास के बाद जब फिजिक्स की क्लास आई तो अक्स सर से हम सभी पहली बार रूबरू हुए थे।सीनियर्स के द्धारा बनाया गया खौफ बिलकुल सच सा लग रहा था।पहली ही क्लास में तेजतर्रार अंग्रेजी ने इतना तो समझा दिया था की शायद रिमेडियल ही बाकी इस सब्जेक्ट में।सर का मैग्नेटिजम और मैग्नेटाइज में अंतर करना हमारे लिए बहुत बड़ा टास्क हुआ करता था।संपूर्ण CA  में 2-3 नंबर ही हर कोई पाता था।धीरे धीरे हम सर को समझने लगे। उनका हंसना और गुस्सा करना दोनो सीमित थे।परंतु वक्त के साथ हमारे लिए उनका प्रेम असीमित हो गया था।इसका प्रमुख उदाहरण था किसी भी बच्चे का उस विषय में रिमीडियल ना लगना।हम लोग डिप्लोमा के द्वितीय वर्ष में आ गए थे। उस दिन हमारे दोस्त आदर्श ने हमे बताया था कि सर का पूरा नाम आनंद कुमार शर्मा है और वो भी एक हॉस्टलर थे जो कमरा न. 38 में रह चुके हैं।उस समय के बाद जब भी सर को पढ़ाता हुए देखते तो खुद पर गर्व करते थे कि एक अरसे पहले हम भी इनके विद्यार्थी थे।मुझे आज भी याद है मेरी आपसे आखिरी मुलाकात फेयरवेल के दिन हुई थी।जब मैं कविता में "अक्स सर की फिजिक्स ने हमको बहुत डराया था,मैग्नेटिज्म और मैग्नेटाइज का अंतर हमे समझ न आया था" वाली पंक्ति पढ़ी थी।आपकी वो मुस्कान मेरे ह्रदय में आज भी है।
आज जब आपके पंचतत्व में विलीन होने की खबर सुनी तो मन ठहर सा गया।मन में वो सब किस्से उमड़ गए जो आपसे जुड़े हुए हुए थे।कई यादें हैं जो अब सिर्फ याद ही हैं।आपका जाना हम विद्यार्थियों और सम्पूर्ण कॉलेज के लिए एक क्षति है जो शायद कभी पूर्ण ना हो पाएगी।
आप सदैव याद आओगे सर ,अलविदा!
आपका आज्ञाकारी भूतपूर्व शिष्य
...#जलज कुमार