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कोन कहता है कि चांद गुरूर करता है। सुंदर दिखती मगर

कोन कहता है कि चांद गुरूर करता है।
सुंदर दिखती मगर है बड़ा उदार।
जगत को जागने केलिए अपना तेजी आखों से
सभिको  देती है कड़ा नजर।
हरवक्त हर रात हर दिन नीघरना करती है।
लेकिन उसे इंसान नहीं करता कदर।
सोचो जरा गुरूर है किसके अंदर।

©Sri batsa Meher
  इंसान और चांद

इंसान और चांद #कविता

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