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पसंद नही मै किसी को ये मैं जानता हूं मगर क्या करू

पसंद नही मै किसी को ये मैं जानता हूं 
मगर क्या करूँ उसे अपना मानता हूं 

मुझे आता नही मैक्रो फरेब करना 
ग़लती मेरी है मैं सच को करीब से जानता हूं 

ये मुश्किल है तुम्हे लफ्जो में बया करना 
मगर हाथ दिल पे रखा कर पूछ अपने 
क्या सच मे मैं उसे जानता हूं 

दिल तो बहुत करता है बात करू तुझसे ऐ दोस्त 
मगर तुम्हे ग़ुरूर है अपने हुस्न पे में ये बात जानता हूं  उफ़ ये मोहब्बत
ग़ुरूर किस बात का खालिद 
दुनियां में दो हि किस्म के लोग है
पसंद नही मै किसी को ये मैं जानता हूं 
मगर क्या करूँ उसे अपना मानता हूं 

मुझे आता नही मैक्रो फरेब करना 
ग़लती मेरी है मैं सच को करीब से जानता हूं 

ये मुश्किल है तुम्हे लफ्जो में बया करना 
मगर हाथ दिल पे रखा कर पूछ अपने 
क्या सच मे मैं उसे जानता हूं 

दिल तो बहुत करता है बात करू तुझसे ऐ दोस्त 
मगर तुम्हे ग़ुरूर है अपने हुस्न पे में ये बात जानता हूं  उफ़ ये मोहब्बत
ग़ुरूर किस बात का खालिद 
दुनियां में दो हि किस्म के लोग है

उफ़ ये मोहब्बत ग़ुरूर किस बात का खालिद दुनियां में दो हि किस्म के लोग है