ये दिन है धागों का मैं धागों सी बुनती हुँ, मैं हूँ इक बहना की भाई के कलाई में सजती हुँ ये है इक कवच, जो रक्षा मेरी करता है बंधता भाई के हाथों में और ढाल मेरा बनता है ये है इक बंधन जो जो बांधे रिश्तों को रखता है जिसे मन भी पुरे मन इस बंधन की कुबूल करता है ये दिन है धागों का मैं धागों सी बुनती हुँ,