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ऊँच-नीच का भेद न माने, जाति ,गोत्र न मन पहचानें। व

ऊँच-नीच का भेद न माने, जाति ,गोत्र न मन पहचानें।
विषय,विकार सब विलुप्तप्राय है,
कथानक का ये अभिप्राय है।
मन का दीपक आप जलाएं!
द्वेष, घृणा को दूर भगाएं।
काग, कोयल के रंग एक हैं!
स्वर की कोमलता पहचानें।
रंग रूप का भेद न मानें।। #Dinkar
ऊँच-नीच का भेद न माने, जाति ,गोत्र न मन पहचानें।
विषय,विकार सब विलुप्तप्राय है,
कथानक का ये अभिप्राय है।
मन का दीपक आप जलाएं!
द्वेष, घृणा को दूर भगाएं।
काग, कोयल के रंग एक हैं!
स्वर की कोमलता पहचानें।
रंग रूप का भेद न मानें।। #Dinkar