खफा थी मोहब्बत की दुनिया, बेरुखी कर लिया आसमानों ने भी, जलती रही मेरे इश्क की चिता, हंसते रही महबूब मेरी भी।। दर्द से तड़पती ये आंखे, आंसुओ की बढ़ो में बह गई यादें, सितम की मोहब्बत थी जो रूह से मेरी, बेवफाई के नगमे वो सुनने से खुदको बांधे।। जहर सा समझ के उसकी दुख भरी कहानी, पी गए हम भी जो सुनी उसकी ज़ुबानी, अब्तो रहम की भी लाज नही उससे, जिसे कहा था की है वो मेरी मेहरबानी।। चलो अब हम भी चलेंगे उन राहों पर, जिनपर चलने की ना कसमें ठानी थी, जो रखते है अब मुझसे तन्हाई की कसमें, उनकी सांसों से भी बस मेरी आह आनी थी।। मोहब्बत की कब्र