गीत रूक गया। इकबाल ने किशोर की ओर देखा, वह चुप बैठा था। उसने एक झोली पसारकर कहा, "किशोर! तुम भी कुछ मदद करो।" किशोर की आँखें भीग गईं। अवरुद्ध स्वर में उसने कहा, "मेरे पास कुछ भी नहीं है इकबाल!" "अरे भले आदमी, कुछ भी नहीं है?" इकबाल ने मुस्कुराकर कहा। "सचमुच कुछ नहीं है। भैया का स्कूल बंद हो गया है, क्योंकि बहुत से लड़के पढ़ने नहीं आते। आधी तन्ख्वाह मिलती है। कोई बीमा कराता नहीं । खर्च पूरा पड़ता नहीं। मैंने हफ्ता भर हुआ, कॉलेज छोड़ दिया है..." इकबाल का हाथ गिर गया और मुँह से निकला, "अरे!" किशोर ने ग्लानि से मुँह फेर लिया। उसका हृदय पानी पानी हो रहा था। #विषाद_मठ #coronavirus#विषाद_मठ #रांगेय_राघव