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"जिंदा रहने की ख्वाहिश कुदरती तौर पर मुझमें भी हो

"जिंदा रहने की ख्वाहिश 
कुदरती तौर पर मुझमें भी होनी चाहिए 
मैं इसे छिपाना नहीं चाहता, 
लेकिन मेरा जिंदा रहना एक शर्त पर है 
मैं कैद होकर या पाबंद होकर 
जिंदा रहना नहीं चाहता"

"दिल से निकलेगी न मरकर 
भी वतन की उलफत, 
मेरी मिट्‌टी से भी 
खुशबू-ए वतन आएगी"

"जिंदगी तो सिर्फ 
अपने कंधों पर जी जाती है, 
दूसरों के कंधे पर तो 
सिर्फ जनाजे उठाए जाते हैं"

भगत सिंह
(28 Sept 1907- 23 Mar 1931)

©Manku Allahabadi भगत सिंह
(28 Sept 1907- 23 Mar 1931)
............................ ............................
"जिंदा रहने की ख्वाहिश 
कुदरती तौर पर मुझमें भी होनी चाहिए 
मैं इसे छिपाना नहीं चाहता, 
लेकिन मेरा जिंदा रहना एक शर्त पर है 
मैं कैद होकर या पाबंद होकर
"जिंदा रहने की ख्वाहिश 
कुदरती तौर पर मुझमें भी होनी चाहिए 
मैं इसे छिपाना नहीं चाहता, 
लेकिन मेरा जिंदा रहना एक शर्त पर है 
मैं कैद होकर या पाबंद होकर 
जिंदा रहना नहीं चाहता"

"दिल से निकलेगी न मरकर 
भी वतन की उलफत, 
मेरी मिट्‌टी से भी 
खुशबू-ए वतन आएगी"

"जिंदगी तो सिर्फ 
अपने कंधों पर जी जाती है, 
दूसरों के कंधे पर तो 
सिर्फ जनाजे उठाए जाते हैं"

भगत सिंह
(28 Sept 1907- 23 Mar 1931)

©Manku Allahabadi भगत सिंह
(28 Sept 1907- 23 Mar 1931)
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"जिंदा रहने की ख्वाहिश 
कुदरती तौर पर मुझमें भी होनी चाहिए 
मैं इसे छिपाना नहीं चाहता, 
लेकिन मेरा जिंदा रहना एक शर्त पर है 
मैं कैद होकर या पाबंद होकर