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कभी कभी हम ख़ुद की तलाश करते रह जाते है और जब हमें यूँ भटकता देख हमसे कोई सवाल करता हैं तो हमारे पास कोई जवाब नहीं होता हैं क्योंकि हम जिसे ढूँढते रहते हैं वो कोई और नहीं हम ही होते हैं
कभी किसी के सामने जिक्र भी करे लोग हँसकर टाल देते हैं पर कभी भी हमारे कहें उन शब्दों के पीछे छिपे भाव कोई कोई नहीं समझ पाते
कहना तो बहुत कुछ हैं पर ज्यादा बोलना भी पागलपन की निशानी समझती हैं दुनिया
बस मन में आया कि जाते जाते कुछ अच्छा बोल देते हैं
किसी को भी मेरी बातों से या मैंने ठेस पहुँचायी हो तो आपसे सिर्फ माफ़ी माँग सकती हूँ