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कभी -कभी सोचती हूं काश बता देती क्या हैं मेरे मन म

कभी -कभी सोचती हूं काश बता देती क्या
हैं मेरे मन मैं कितना अच्छा होता
पर कुछ बातों का कोई मतलब नहीं होता
पर मेरी हर बात मैं तेरा ज़िक्र किया था मैंने 
हर दिन तेरी फिक्र की थी मैंने 
पता था की नहीं होगा
ये मुक्कमल साथ हमारा
इस बात को समझाने की कोशिश की मैंने
ख़ुद को 
पर क्या करे कुछ बातों पर ज़ोर नहीं था मेरा
एक आस थी दिल मैं शायद तुम्हे बता पाती 
पर खुदा से कभी मांगा नहीं तुझे
क्योंकि कुछ सपने मेरे भी थे ... और शायद कुछ तेरे भी लिखने बैठू तो शायद शब्द कम पड़ जाय इतनी बातें बतानी थी तूझे

पर अब कोई शिकायत नहीं हैं मुझे क्यूंकि किस्मत की  बातों पर अब भरोसा हैं मुझे 
जो होता हैं अच्छे के लिए होता हैं

©@#sandhya