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बिछड़ के तुम से ज़िंदगी सज़ा लगती है; यह साँस भी जैसे

बिछड़ के तुम से ज़िंदगी सज़ा लगती है;
यह साँस भी जैसे मुझ से ख़फ़ा लगती है;
तड़प उठता हूँ दर्द के मारे में अली 
ज़ख्मों को जब तेरे शहर की हवा लगती है;
अगर उम्मीद-ए-वफ़ा करूँ तो किस से करूँ;
मुझ को तो मेरी ज़िंदगी भी बेवफ़ा लगती है।

©Ghulam Ali
  जिंदगी सज़ा लगती है
ghulamali5739

Ghulam Ali

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जिंदगी सज़ा लगती है #Shayari

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