अलाव भले ही पूछे छूट गए वो अलाव के दिन लेकिन.. बहुत याद आते हैं वो शिकवे शिकायत और लगाव के दिन जब.... रूमहीटर और ब्लोअर की गरमी फैलाती जालीओं से झांकती हैं पापा के कृषक कर से सुलगाए हुए अलाव के वो लाल ,पीले आग और गुलाबी भुंमुर जो .....मेरे कानों में हल्के से फुसफुसाते हैं.. इस मशीनी तपिश में तुझे कभी याद नहीं आती मेरी ...और मेरे स्नेह से पके सोंधे सोंधे शकरकंदी, मटर की फलियां और वो कस्से आमले मैं चुपचाप सोचती रह जाती हूं जाने कहां गए ... अलाव की आत्मकथ्य समझाते...वो, लगाव के दिन, वो ठहराव के दिन जो अपनी राख मैं भी गरमी, नरमी और सौंधापन संजोए रखता है... गांव घर की रिश्तों की तरह। ©bimmi prasad #अलाव