चर्चे चार दीवारी में रहने वाले चर्चे उस दिन सड़कों पर निकल पड़े दूर तलक जाने का इरादा था लेकिन चौखट पर ही खड़े रहे शायद डर गए लोगों के हुज़ूम से गिद्दों की तरह नोंचने के जुनून से पैनी नज़रे, तेज़ ज़ुबां का वार हुआ साधारण चर्चा अब रौनक ए बाजार हुआ चुस्कियां चाय की हमारे चर्चो बिन फीकी थी इज़्ज़त भी कौड़ी के दाम अभी अभी बिकी थी घर से बाहर कदम रखते ही एक शोर सुना नाम तेरा मेरा लेकिन किस्सा कुछ और सुना कपड़े बदन पर थे फिर भी नंगे लगते थे हमारे नाम से शहर में हुए दंगे लगते थे हर कोई अब हमें फैसला सुनाये जाता था हमे कालिख, खुद को दूध से धुलाये जाता था काश ये चर्चे चारदीवारी में दम तोड़ देते हम आंखों के आँसू आसानी से पोंछ लेते जब से घर से चर्चा बाजार गया हैं आंसुओ का बहना भी बेकार हुआ हैं इंतेज़ार हैं कि चर्चा अपनी मौत खुद मरे हम भी घर से निकले बिना सहमे डरे समय संग बाजार भी हमें भूल जायेगा किसी और के चर्चे में मशगूल हो जायेगा मुकुल पाल #चर्चे #gossip #scrutiny #characterassasination #ज़िंदगी