रास्तो ने दी है दावत मुझे में चला जा रहा हूं न दाएं देख रहा हु न बाँये बस चला जा रहा हूं रास्ते गुरुर कर बैठे थे फिर एक बार में दसरथ माझी की तरह चट्टानों को तोड़ कर नई राहें बनाता जा रहा हूं अब जो होगा देख लूँगा मैं मौत के आगे झुक जाऊ या सामना करु रब के हाथ छोड़ चला जा रहा हूँ दावत दी है रास्तो ने तो कैसे हार जाऊ छोटी सी उम्र में जवानी की तौहीन कैसे करा जाऊ मैं माना हौसले बुलंद है मेरे ए रास्ते तो क्या तुझसे घबराकर घर बैठ जाऊ ©Harshit Sharma #RailTrack हर्षित शर्मा