जनहित की रामायण - 86 विपक्ष जन की चाहत है, बार बार हार जावत है । आपस में लड़ना भिड़ना, इनको सदा हरावत है ।। साम दाम दण्ड़ भेद, राजनीति के है हथियार । इनसे निपट सकने में भी, विपक्ष सक्षम नहीं है यार ।। प्रचार प्रसार बिन जनजागृति, सम्भव ही नहीं दिखती है । पत्रकारों की ज़मातें तो, विपक्ष की नहीं सुनती है ।। जनहक अब अपहृत है, जन में भ्रम पसरत है । एक आध कहीं आवाज़ उठे, उस पर क़हर बरसत है ।। रोज़गार घटत जात है, मँहगाई बढ़त जात है । बचत हो ही न पात है, जीवन बना अभिशाप है ।। -आवेश हिंदुस्तानी 31.07.2022 ©Ashok Mangal #JanhitKiRamayan #AaveshVaani #JanMannKiBaat #Opposition